
पिछले एक महीने में क्रूड की कीमत 108 डॉलर से घट कर 91 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई है। चूंकि देश की तेल कंपनियां पेट्रोलियम उत्पाद बनाने के लिए 80 फीसदी तक कच्चा तेल बाहर से मंगवाती हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत को देख कर ही पेट्रोल की घरेलू कीमत तय की जाती है। वैसे इस कमी के बावजूद तेल कंपनियों ने कहा है कि उन्हें डीजल पर इस समय 10.20 रुपये प्रति लीटर, केरोसिन पर 24.16 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस पर 396 रुपये प्रति गैस सिलिंडर का घाटा हो रहा है। इस हिसाब से पूरे वर्ष में तेल कंपनियों को 1,51,000 करोड़ रुपये का संभावित घाटा होने के आसार हैं। पर ये घाटा कहा हो रहा हें ? वेसे सोनिया की गुलाम केंद्र सरकार डीजल कीमत को तय करने का नया फार्मूला बना रही है। जिसके बाद डीजल भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो जायेगा और फिर पेट्रोल की कीमते जेसे बढ़ी वेसे इसकी भी कीमते आसमान छुएगी , लेकिन इसे राष्ट्रपति चुनाव के बाद लागू किया जाएगा ।
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