30 दिसंबर 2013

चीन के झूठ का पर्दाफाश, कागज का निर्माण दुनिया में सबसे पहले भारत में किया गया,


कागज बनाना पूरी दुनिया को भारत ने सिखाया, दुनिया में सबसे पहले कागज बनना भारत मे शुरू हुआ था | भारत मे एक घास होती है, उसको सन कहते है, और एक घास होती है उसको मुंज कहते है | मुंज घास बहुत तीखी होती है ऊँगली को काट सकती है और खून निकाल सकती है | सन वाली घास थोड़ी नरम होती है ऊँगली को काटती नही है | भारत के हर गाँव मे इस घास से रस्सिया बुनी जाती हैं, और गाँवों में ये मुफ्त में, बहुताय में होती है | बंगाल मे, बिहार मे, झाड़खंड मे, ओड़िसा मे, असम मे, भारत में कोई गाँव नही जहाँ सन न हो और मुंज न हो | तो जिन इलाके मे सन और मुंज सबसे जादा होती रही है, इसी इलाके मे सबसे पहले कागज बनना शुरू हुआ सन की घास से और मुंज की घास से हमने सबसे पहले कागज बनाया | सबसे पहले कागज बनाके हमने दुनिया को दिया | और वो कागज बनाने की तकनीक आज से २००० साल पुरानी है | चीन के ही दस्ताबेजों से ये बात पता चली है | चीनियों के दस्ताबेजों मे ये लिखा हुआ है, कि उन्होंने जो कागज बनाना सिखा वो भारत से सिखा, सन और मुंज की रस्सी से |
कागज बनाने की भारतीय पुरातन विधि : http://www.youtube.com/watch?v=WsupN4PIprY

कागज निर्माता सन के पौधों से बने पुराने रस्से, कपडे़ और जाल खरीदते हैं। उन्हें टुकडों में काटकर फिर पानी में कुछ दिनों के लिए डुबोते हैं। आमतौर पर पानी में डुबोने का काम पांच दिनों तक किया जाता है। उसके बाद इन चीजों को एक टोकरी में नदी में धोया जाता है, और उन्हें जमीन में लगे पानी के एक बर्तन में डाला जाता है। इस पानी में सेड़गी मिट्टी का घोल छह हिस्सा और खरितचूना सात हिस्सा होता है। इन चीजों को उस हाल में आठ या दस दिनों तक रखने के बाद उन्हें, गीली अवस्था में ही पीट-पीट कर इसके रेशे अलग कर दिए जाते है। उसके बाद इसे साफ छत पर धूप में सुखाया जाता है, फिर उसे पहले की तरह ताजे पानी में डुबोया जाता है। यह प्रक्रिया तीन बार हो जाने के बाद सन मोटा, भूरा कागज बनाने के लिए तैयार हो जाता है इस तरह की सात या आठ धुलाई के बाद वह ठीक-ठाक सफेदी वाला कागज बनाने लायक हो जाता है।
##
सेड़गी मिट्टी एक ऐसी मिट्टी है जिसमें जीवाश्म के क्षारीय गुण होते हैं। .......................। यह इस देश में बड़ी मात्रा में पाया जाता है और इसका प्रयोग व्यापक रुप से धोने, ब्लीच करने, साबुन बनाने और तमाम तरह के अन्य कामों के लिए होता है।
इस तरह तैयार किए गए भुरकुस को हौज के पानी में भिगोया जाता है। हौज के एक तरफ संचालक बैठता है और डंडियां निकाल कर सन की परत को एक फ्रेम पर फैला देता है। इस फे्रम को वह कुंड में तब तक धोता है, जब तक वह भुरकुस कपड़ों से दूधिया सफेद न हो जाए। अब वह फ्रेम और स्क्रीन को पानी में लंबवत डुबोता है, और क्षैतिज अवस्था में ऊपर लाता है। वहां वह फ्रेम को अगल-बगल फिर आगे-पीछे उलटता-पलटता है ताकि वे कण परदे पर बराबर से फैल जाएं। फिर वह उसे पानी से ऊपर उठा कर डंडियों पर एक मिनिट के लिए रख देता है। पानी में इसी तरह फिर डुबोए जाने के बाद कागज का नया पेज तैयार हो जाता है। अब वह विस्तारक को स्क्रीन से हटाकर स्क्रीन और शीट के ऊपरी हिस्से को एक इंच भीतर की तरफ मोड़ लेता है। इसका मतलब यह है कि शीट का इतना हिस्सा स्क्रीन से अलग कर दिया जाएगा। अब स्क्रीन को पलट दिया जाता है कागज का जो हिस्सा पहले से अलग हो चुका होता है, उसे चटाई पर बिछा दिया जाता है । स्क्रीन को आराम से कागज से हटा लिया जाता है। इस तरह कागज बनाने वाला एक के बाद एक शीट निकालता रहता है। वह दिन भर मं 250 शीट बनाता है, उन्हें एक के ऊपर एक करके रखने के बाद सन के मोटे कपडे़ कागज के आकार के बराबर होता है। इनके ऊपर वह लकड़ी का मोटा पटरा रख देता है जो आकार में कागजों से बड़ा होता है। यह पटरा अपने दबाव से कागज की गीली शीटों से पानी निकाल देता है। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए कागज बनाने वाला खुद उस पर बैठ जाता है। इस गट्ठर को रात भर के लिए एक तरफ रख दिया जाता है। सुबह इनमें से एक-एक शीट निकाली जाती है उन्हें ब्रश से बराबर किया जाता है । कागज की इन शीटों को घर की प्लास्टर लगी दीवारों पर चिपका दिया जाता है। सूख जाने के बाद उन्हें छुड़ा लिया जाता है और एक साफ चटाई या कपडे़ पर बिछा दिया जाता है। इनको चावल के पानी में डूबे कंबल से रगड़ा जाता है और तुरंत बाद घर में इस उद्देश्य के लिए बनी रस्सी पर सुखाने के लिए लटका दिया जाता है। जब यह पूरी तरह से सूख जाए तो उसे चौकोर काट लिया जाता है, इस आकार के लिए एक मानक शीट को रखकर चाकू चलाया जाता है । इस प्रक्रिया के बाद कागज की यह चादरें अन्य व्यक्ति के पास ले जाई जाती हैं जिसे वह दोनों हाथों में गोल मूरस्टान ग्रेनाइट लेकर रगड़ता हैं। इसके उपरांत वह शीट को मोड़ कर बिक्री के लिए भेज देता है। ज्यादा बारीक कागज दुबारा पालिश किया जाता है। कटे हुए टुकड़ों और खराब हुई चादरों को वापस पानी में रखकर कुचल दिया जाता है, और फिर ऊपर वर्णित प्रक्रिया के मुताबिक पुननिर्मित किया जाता है। और इस तरह पुरातन विधि से भारत में कागज़ बनाया जाता था  ।

कोई टिप्पणी नहीं:

81 करोड़ भारतीयों का आधार & पासपोर्ट डाटा बिक्री के लिए उपलब्ध

  अख़बार  बिजनेस स्टैंडर्ड  की रिपोर्ट के मुताबिक़, 81 करोड़ से ज़्यादा भारतीयों की निजी जानकारी डार्क वेब पर बिक्री के लिए उपलब्ध है. अख़बा...