बिहार में गत वर्ष केंद्रीय पूल के लिए खरीदा गया 83 हजार टन गेहूं भारतीय खाद्य निगम [एफसीआइ] के गोदामों तक नहीं पहुंचा, न ही उसका हिसाब-किताब मिल रहा है। परेशान एफसीआइ ने अफसरों को तलब कर पड़ताल शुरू कर दी है। साथ ही, बिहार सरकार से गुम हुए गेहूं की तलाश करने को कहा है।
एफसीआइ ने बिहार के खाद्य सचिव शिशिर सिन्हा को 14 अप्रैल को भेजे पत्र में कहा है कि पिछले रबी सीजन में [31 जुलाई 2011] खरीदे गए पांच लाख दो हजार नौ टन गेहूं में चार लाख आठ हजार 359 टन ही 31 मार्च 2012 तक उनके गोदामों तक पहुंचा है। गेहूं की बाकी मात्रा का पता नहीं चल रहा है। किसानों से सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदा गया यह गेहूं एफसीआइ के दस्तावेजों में दर्ज है। पत्र में पूछा गया है कि बाकी गेहूं कहां रखा हुआ है? ताकि उसका सत्यापन कराकर वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके।
पिछले रबी सीजन में राज्य की चार एजेंसियों के माध्यम से बिहार में गेहूं की खरीद हुई थी। सबसे अधिक खरीद पैक्स के माध्यम से हुई। पैक्स ने दो लाख नौ हजार 979 टन गेहूं खरीदा। इसमें 41,156 टन गेहूं एफसीआइ के गोदामों तक नहीं पहुंचा। बिस्कोमान ने एक लाख अड़तालीस हजार इक्कीस टन गेहूं खरीदा। इस एजेंसी के भी 22,000 टन गेहूं का अता-पता नहीं है। नैफेड ने एक लाख आठ हजार दो सौ चार टन गेहूं की खरीद की, जिसका 14,116 टन गेहूं कहीं और चला गया।
एफसीआइ के अफसरों ने इस गेहूं को उसके गोदामों में जमा कराने के लिए राज्य सरकार को कई पत्र लिखे। संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो निगम के उप महाप्रबंधक अमरेश कुमार ने बिहार के खाद्य सचिव शिशिर सिन्हा को 16 मई को पत्र लिखकर विस्तृत ब्योरा उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। शिशिर सिन्हा ने गड़बड़ी की बात को तो स्वीकारा, लेकिन इसे घोटाला मानने को तैयार नहीं हैं।
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