11 जून 2012

देश और दिल्ली की शान ''जंतर-मंतर'' बंद हमेशा के लिए, अब नही चलेंगी 288 साल पुरानी सूर्य घडिया.........


दिल्ली ने अपनी एक ऐतिहासिक विरासत जंतर-मंतर को खो दिया है । इसके आसपास ऊंची इमारतों के कारण इसके सूर्य घड़ी यंत्रों  तक रोशनी पहुंचना बंद हो गई है। सूर्य की स्थिति के आधार पर नक्षत्रों की स्थिति एवं समय की गणना करने वाले 288 साल पुराने बेजोड़ खगोलीय यंत्र अब कभी नहीं चलेंगे । इसके आसपास 19 से लेकर 102 मीटर तक ऊंची इमारतें जंतर-मंतर की चहारदीवारी से लेकर करीब 90 मीटर तक के दायरे में फैली हैं। इनमें आधा दर्जन इमारतें सरकारी हैं।
खगोलीय स्थापत्य की इस विरासत का इस तरह बेकार होना सरकारी तंत्र की लापरवाही उजागर करता है। दिल्ली सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दो साल पहले जंतर-मंतर को यूनेस्को की साझा विश्व विरासतों में शामिल कराने का प्रयास किया था, लेकिन सूर्य यंत्र पूरी तरह बेकार होने के कारण यूनेस्को ने मना कर दिया । और इस चोर सरकार ने इस सच्चाई को आम जनता से छिपा लिया ।
हमारे खगोलीय ज्ञान का यह आश्चर्य अब एक इमारत बन कर रह गया है, सेकड़ो सालो पहले बगेर किन्ही मशीनी साधनों की मदद लिए इस तरह के यंत्र का निर्माण हमारे अदभुत खगोलीय ज्ञान को दर्शाता हें, जिसे 1982 के एशियाई खेलों का शुभंकर बनाया गया था । जंतर-मंतर पर पुरातत्व सर्वेक्षण के दस्तावेज बताते हैं कि इसको घेरने वाली आठ इमारतों में दो नई दिल्ली नगर निगम [एनडीएमसी] की हैं जबकि एक-एक इमारत बैंक ऑफ बड़ौदा और स्टेट बैंक की है। शेष इमारतें निजी हैं। 102 मीटर सबसे ऊंची इमारत एनडीएमसी की पुरानी बिल्डिंग है। दरअसल सरकार ने 1992 में पहली बार यहां इमारतों के लिए नियम तय किए थे। जंतर-मंतर को घेरने वाली ज्यादातर इमारतें 1992 के पहले ही बन गई थीं। मगर अचरज यह है एनडीएमसी का दूसरा भवन और 14, जनपथ लेन की इमारत इस आदेश के बाद बनी। 14, जनपथ लेन की इमारत तो बगैर मंजूरी के बन गई जबकि एनडीएमसी की नई इमारत को विशेष मंजूरी दी गई। यही दोनों इमारतें जंतर-मंतर की धूप रोकने में सबसे आगे हैं। सरकार को इन इमारतो को हटाकर देश की इस अदभुत धरोहर को वापस देश को देना होगा |



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