25 अप्रैल 2012

एशिया का पहला डॉल्फिन मछली शोध केंद्र पटना में - पूरे भारत में डोल्फिनो की संख्या सिर्फ 1800


दुनिया के दुर्लभ प्राणियों में से एक और विलुप्तप्राय होती जा रही डॉल्फिनों की तादाद बिहार में भी कम होती जा रही है. इसके दो कारण हें,डॉल्फिनों का लगातार हो रहा शिकार और गंगा में बढ़ता प्रदूषण और घटता जलस्तर, सरकार अब डॉल्फिनों को बचाने के लिए पटना (बिहार) में एशिया का पहला डॉल्फिन शोध केंद्र खोलने जा रही है.वर्ष 2009 में केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई 'भारतीय वन्य जीव संरक्षण नीति' के तहत डॉल्फिनों को सुरक्षा प्रदान करने के प्रयास के बाद भी बिहार में गंगा नदी में इस स्तनधारी प्राणी की सुरक्षा के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.
गंगा में घटते जलस्तर व उसकी गंदगी पर भी पर्यावरण वैज्ञानिक समय-समय पर चिंता प्रकट करते रहे हैं. जलस्तर घटने के कारण डॉल्फिनों के शिकार की संख्या बहुत बढ़ गयी है.
पूरे भारत में डोल्फिनो की संख्या 1800 है जिसमें अकेले बिहार में ही 1200 डॉल्फिन हैं.आंकड़ों के अनुसार दो-तीन वर्ष पूर्व पटना में गंगा नदी के गाय घाट से लेकर कलेक्ट्रियट घाट तक 200 डॉल्फिनें थीं लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 25 से 30 रह गई है.
इन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 1991 में बिहार में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के करीब 60 किलोमीटर क्षेत्र को 'गैंगेटिक रिवर डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र' घोषित किया है लेकिन इसके बाद भी इनके शिकार में कमी नहीं आ रही है.
डॉल्फिनों के शिकार का मुख्य कारण इनमे पाए जाने वाला एक विशेष प्रकार का तेल है. किसी भी डॉल्फिन में यह तेल उसके वजन के 30 प्रतिशत के बराबर होता है.
इस तेल की गंध से अन्य मछलियां उसकी ओर आकर्षित होती हैं. मछुआरे अपने जाल में इसी तेल का प्रयोग करते हैं और इस तेल को पाने के लिए वे डॉल्फिन का शिकार करते हैं. अब भारत में 2000 से भी कम डॉल्फिन हैं.वहीं डॉल्फिनों की कमी का कारण गंगा का प्रदूषणयुक्त होना भी मुख्य हैं.गंगा के घटते जलस्तर को रोकना एक बड़ी चुनौती है,
बिहार सरकार की पहल पर बनने वाला यह केंद्र एशिया का पहला डॉल्फिन शोध केंद्र होगा. इससे डॉल्फिन और उसकी कुछ प्रजातियों को बचाने की राह खुलेगी, गैंगेटिक डॉल्फिन स्वच्छ पानी में पाई जाने वाली चार प्रजातियों में एक हैं.डॉल्फिन स्तनधारी जीव है,आम बोलचाल की भाषा में सोंस और संसू कहे जाने वाले डॉल्फिन को 'गंगा की गाय' नाम से भी जाना जाता है

 डॉल्फिन के विकास के क्रम में इनमें चमगादड़ों की तरह बहुत ही सूक्ष्म 'इको लोकेशन सिस्टम' का विकास होता है. ये ध्वनि ( अल्ट्रा साउंड ) के आधार पर दिशा का अनुमान लगाते हैं और अपना शिकार खोजते हैं..........

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